यह स्कूल नहीं रसोइघर है

( यो कविता पढेपछि हिन्दीका चर्चित कवि-आख्यानकार उदय प्रकाशले गरेको यो टिप्पणीले युवा कविहरूप्रति राखिने भारतीय सोंचबारे केही त भन्छ नै-
तिनी भन्छन्-)

''सरकार, अक्षरों में तो जहर डाल दिया आप ने
खिचड़ी कौन सी बड़ी बात है?''

कुछ वर्तनी और व्याकरण की बहुत मामूली अशुद्धियों को खुद ही सुधार कर पढ़ें दोस्तो यह अपूर्व कविता. काश यह कवि 'हिंदी' में होता ...! (लेकिन तब क्या उसका नाम कहीं रहता ?)
-उदय प्रकाश 
यहाँ किताब जलने के बाद चावल पकता है 
यहाँ पेन्सिल जलने के बाद दाल पकता है 
आप का ताकतवर कविता लिखना कोई बड़ी बात नहीं
इस चुह्ले में आग का जलना बड़ा बात है
सर, यह स्कूल नहीं रसोइघर है।

ओला को नंगे पैर रौंदते हुए गरपगरप यहाँ आ पहुंचना 
आंख खुले रखकर उन्होनें देखा है सपने।

वे मरे हुए सपनों की पूजा करनेवाला जाति हैं 
वे निरक्षर देवताओं के भक्त हैं 
वे जंगल-जंगल कन्दमूल खुदाइ करते हुए यहाँ आ बसे हैं
उन के पगडंडी हैं ये नद-नदी 
उन के पदचिह्न हैं ये गावं
अक्षर के पहुंचने से पहले यहाँ उन का गाना आ पहुंचा 
गानों के आने से ही तो हिल पड़े थे नथनी
अक्षर के आने से पहले यहाँ आ पहुंचा उन का खून 
खून के आने से ही पहाड़ी गर्भवती हुई।

खून से लथपथ गीत गुनगुनाकर उन्होनें
गावं का बुना हुआ बांस के थैली जैसे टेंड़ेंमेंड़े रास्तों पे उन्होनें पेशाब किया है
कन्दमूल के खतम होते ही मां ने पेट में बांधी थी लुंगी की फेर।
उस दिन से ही ये गावं उस लुंगी की फेर को बाँधा हुआ है
लुंगी की फेर बांधा हुआ ये गावं जिस दिन नंगे पैर घुसा संसद भवन
उसी दिन बना था रसोइघर में स्कूल
या स्कूल में रसोइघर।

रसोइघर में
क-एं चावल के लिए कतार बनाते हैं
ख-एं, अ-एं, कुछेक आकर, ऐकर दाल के लिए खड़े होते हैं
किसी दार्शनिक का एक ताकतवर वाक्य किताब के सट्टा थाली उठा लेता है
किसी कवि का कालजयी हरफ पेंसिल के सट्टा चम्मच पकड़ लेता है।
सर, यह स्कूल नहीं रसोइघर है।

उन के दिमाग के हरेक साख में
ज्ञान की अंकुर लगने से पहले ही भूख की फूल फटती है और मगमगाने लगती है
फूलों से निकल कर हरेक बीज आगे बड़ती है रसोइघर के तरफ ही
क्योंकि वहां पकती है खिचड़ी।

शिक्षा का मतलब खिचड़ी ही तो है
सर, यह स्कूल नहीं रसोइघर है।

जब पकती है खिचड़ी
बालक अक्षर थुक निगलते हुए देखते हैं हथेली खुन्ती की।
दाल से उड़ते हुए भाप ढक देती है ब्ल्याकबोर्ड व चक
ढक जाते हैं किताबें व वहां उन के लिए लिखे गए जीवन सारे।

आप ही पुछिए ना
‘पृथ्वी कैसा है?’
बच्चे बोलेंगे- ‘अण्डे की तरह’
क्योंकि आज पढ़्ने का दिन नहीं अण्डा खाने का दिन है।
सर, यह स्कूल नहीं रसोइघर है।

सरकार, अक्षरों में तो जहर डाल दिया आप ने
खिचड़ी कौन सी बड़ी बात है?
डालिए जहर डालिए ना
लेकिन अगर बच जाते हैं कुछ अक्षर और उन से बन जाते हैं कुछेक वाक्य
वे आप का ‘अन्त्य’ होंगे
सर, यह स्कूल नहीं रसोइघर है।
(मूल नेपाली से हिन्दी में अनुवाद- राजा पुनियानी)

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